Subhash Chandra Bose Jayanti Speech , Parakram Diwas Speech in Hindi यह आसान भाषण सुभाष चंद्र बोस जयंती पराक्रम दिवस पर दिया जा सकता है
सुभाष चंद्र बोस जयंती भाषण, पराक्रम दिवस भाषण हिंदी में: भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के महान नेता नेताजी सुभाष चंद्र बोस की जयंती 23 जनवरी को पराक्रम दिवस के रूप में मनाई जाती है।
- तुम मुझे खून दो, मैं तुम्हें आजादी दूंगा
- जय हिन्द।
- दिल्ली चलो
जैसे नारों से स्वतंत्रता संग्राम को नई ऊर्जा देने वाले नेताजी सुभाष चंद्र बोस का जन्म 23 जनवरी, 1897 को ओडिशा के कटक शहर में हुआ था। देश के स्वतंत्रता आंदोलन के नायकों में से एक नेताजी की जीवनी, उनके विचार और उनका कठोर बलिदान आज के युवाओं के लिए बहुत प्रेरणादायी है।
सुभाष चंद्र बोस की जयंती के अवसर पर स्कूलों और कॉलेजों में नेताजी पर आधारित भाषण और निबंध प्रतियोगिताओं का आयोजन किया जाता है। अगर आप भी ऐसी किसी भाषण प्रतियोगिता में भाग लेना चाहते हैं तो नीचे दिए गए भाषण से उदाहरण ले सकते हैं।
Subhash Chandra Bose Jayanti Speech
यहां उपस्थित प्राचार्य, आदरणीय शिक्षकगण और मेरे प्यारे साथियों। आप सभी को मेरा नमस्कार। आज हम यहां देश के स्वतंत्रता संग्राम के महान नायक नेताजी सुभाष चंद्र बोस की जयंती मनाने के लिए एकत्रित हुए हैं। इस दिन पूरा देश पराक्रम दिवस भी मना रहा है.
“भारत सरकार ने वर्ष 2021 में नेताजी सुभाष चंद्र बोस की जयंती को पराक्रम दिवस के रूप में मनाने की घोषणा की थी।”
नेताजी सुभाष चंद्र बोस के नारों ने स्वतंत्रता आंदोलन और जनता में जबरदस्त जान डाल दी थी। ‘तुम मुझे खून दो, मैं तुम्हें आजादी दूंगा!’, और जय हिंद! ऐसे ही नारे थे जिन्होंने स्वतंत्रता संग्राम को गति दी।
नेताजी सुभाष चंद्र बोस का जन्म 23 जनवरी 1897 को ओडिशा के कटक में हुआ था। वह बचपन से ही पढ़ाई में काफी तेज थे। उनका राष्ट्रवादी स्वभाव स्कूल के दिनों से ही सबको दिखाई देता था। स्कूली शिक्षा के बाद, उन्होंने कोलकाता के प्रेसीडेंसी कॉलेज में प्रवेश लिया।
इसके बाद वे इंजीनियरिंग की पढ़ाई करने कैम्ब्रिज यूनिवर्सिटी चले गए। स्वतंत्रता संग्राम में शामिल होने के लिए नेताजी ने भारतीय सिविल सेवा में एक आरामदायक नौकरी ठुकरा दी। उन्हें भारतीय सिविल सेवा परीक्षा में चौथा स्थान मिला था। सिविल सेवक का पद किसी भी भारतीय के लिए बहुत प्रतिष्ठित होता है लेकिन नेताजी ने अपना शेष जीवन भारत को ब्रिटिश शासन से मुक्त कराने के लिए समर्पित करने का निर्णय लिया।
1919 में जलियांवाला बाग की घटना ने उन्हें इतना विचलित कर दिया कि वे स्वतंत्रता संग्राम में कूद पड़े। अंग्रेजों के खिलाफ आवाज उठाने के लिए उन्हें कई बार जेल भी जाना पड़ा लेकिन देश को आजाद कराने का उनका संकल्प और दृढ़ हो गया।
भारत को अंग्रेजों से मुक्त कराने के लिए नेताजी ने 21 अक्टूबर 1943 को ‘आजाद हिंद सरकार’ की स्थापना करते हुए ‘आजाद हिंद फौज’ का गठन किया। इसके बाद सुभाष चंद्र बोस अपनी सेना के साथ 4 जुलाई 1944 को बर्मा (अब म्यांमार) पहुंचे। यहां उन्होंने ‘तुम मुझे खून दो, मैं तुम्हें आजादी दूंगा’ का नारा दिया।
नेताजी भारत की स्वतंत्रता को लेकर बेचैन थे। उन्होंने जनता के बीच स्वतंत्रता के लिए संघर्ष को प्रज्वलित किया। भारत को अंग्रेजों से आजाद कराने के लिए नेताजी ने 1943 में ‘आजाद हिंद सरकार’ की स्थापना करते हुए ‘आजाद हिंद फौज’ का गठन किया। इस सरकार को जर्मनी, इटली, जापान, आयरलैंड, चीन, कोरिया, फिलीपींस समेत 9 देशों की मान्यता भी मिल चुकी थी।
इसके बाद सुभाष चंद्र बोस अपनी सेना के साथ 4 जुलाई 1944 को बर्मा पहुंचे। यहां उन्होंने ‘तुम मुझे खून दो, मैं तुम्हें आजादी दूंगा’ का नारा दिया। उन्होंने एक नए उत्साह के साथ ‘दिल्ली चलो’ का नारा दिया और भारत को आजाद कराने के लिए कूच किया।
इसके अलावा उन्होंने जर्मनी में आजाद हिंद रेडियो स्टेशन भी शुरू किया और पूर्वी एशिया में भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन का नेतृत्व किया। द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान उन्होंने सोवियत संघ, नाजी जर्मनी, जापान जैसे देशों की यात्रा की और ब्रिटिश सरकार के खिलाफ सहयोग मांगा।
साथियों, आज के युवा सुभाष चंद्र बोस के व्यक्तित्व से प्रेरणा लेते हैं। उनके विचार और उनके कथन आज भी भारतीय जनता के दिलों में बसे हुए हैं। उनके ओजस्वी नारे आज भी प्रासंगिक हैं। जय हिंद का नारा लगते ही माहौल देशभक्ति से सराबोर हो जाता है। मित्रों, आज का दिन नेताजी के जीवन और बलिदान से सीखने का है। आज हमें उनके आदर्शों पर चलने का संकल्प लेना चाहिए। इसी के साथ मैं अपना भाषण समाप्त करना चाहूंगा। जय हिन्द। भारत माता की जय।
